Wednesday, September 1

A ब्लॉग पोस्ट -५




शुक्र है शुक्रवार है.....बड़े दिनों बाद आज Fri को relax सा फील हो रहा है....कल राहत फ़तेह अली खान का concert देखने जाना है.....:)...ऐसे अच्छे दिन आते रहें समय समय पर...और मन लगा रहे....:) आज बड़े दिनों बाद ऑफिस से वापस आके चाट खाई..:); किसी ठेले पर तो नहीं, १ काफी ठीक ठाक सी दुकान पर....ठेले पर खाने का मज़ा कुछ और ही होता है वैसे तो, पर आजकल "hygeine" reasons के कारण ऐसा करना ठीक नहीं बताया जाता..... मौसम का रहमो करम जारी है, आज भी पानी बरसा, और शाम तक मौसम सुहाना ही बना रहा.....बचपन में इस मौसम में हम अंगूर के पत्तों के पकोड़े खाया करते थे..:)....भुट्टे पे नींबू और नमक, आलू प्याज के पकोड़े....और चीला....ये बरसात के मौसम के पर्यायी हुआ करते थे, हो तो वैसे अभी भी सकते हैं, अगर कोई बना के दे दे तो..:)..अपने से रोज़ इतनी मेहनत मुश्किल लगती है थोड़ी .... वैसे इस बरसात में मैंने १ बात जानी....ये ही १ ऐसा मौसम है, जिसमे भारत के लघभग सभी मैदानी शहर १ जैसे लगते हैं, अच्छे...:)....बारिश चाहे चेन्नई में हो...या दिल्ली में....या हमारे झांसी में....बारिश के वो ३-४ घंटे हर शहर की हवा को इतना साफ़...ठंडा ..और सुकूनमय बना देते हैं कि शायद १ यही मौसम है जिसमे दिल्ली क्या..हैदराबाद क्या...कहीं भी बस जाने का मन करने लगेगा.. ...बारिश हो जाने पर ये सूखा धूल भरा गुडगाँव शहर भी रहने लायक लगने लगता है..(- traffic ofcourse) ..

ये पोस्ट लिखी थी कुछ १ महीना पहले.....लिखा तो इसके बाद और भी बहुत कुछ था...पर save नहीं किया ....तो ये पोस्ट इतनी ही रह गयी.....
उस दिन कुछ तस्वीरें लीं थीं..अपने कैमरे से.....अब पाईये नीचे.....


















कुछ दिन पहले हम जयपुर गए थे ऑफिस की तरफ से.....बारिश के मौसम में ऐसा लग रहा था की हम राजस्थान में नहीं...बल्कि दक्षिण भारत के किसी हिल स्टेशन में हैं....:)॥बड़ा मन था रुक के आमेर फोर्ट घूम के आयें, पर कम समय के कारण बस बाहर से ही देख के मन भर लिया.....


5 people have something to say...:

Prats said...

Rajasthan sounds awesome btw loved the 6th pic from the top

विवेक रस्तोगी said...

आमेर का किला बहुत ही सुन्दर लग रहा है बारिश में ..

डॉ .अनुराग said...

pics are beautiful dipti....

Deepti said...

@prats ..ye its good..:)
@vivek sach mein bahut sunder lag raha tha...
@dr anurag..thankus...:)

Neeraj Rohilla said...

चलो पिछली बार तो एक लम्बा कमेण्ट गूगल निगल गया, एक बार फ़िर ट्राई करते हैं क्योंकि तुष्टि ने फ़ेसबुक पे लकी अली का हमारा पसन्दीदा गाना लगाकर मन खुश कर दिया है....

किसी शायर ने कहा है:
एक बरस में मौसम चार, मौसम चार, मौसम चार
पांचवा मौसम प्यार का, इन्तजार का(आ आ आ आ)...

तो ऐसे मौसम में चाट का भी अपना ही मजा है। और भी मजा है जब एकदम अन-हाईजीनिक हो...बचपन याद है जब धूल लगे पत्ते पर आलू की टिक्की खाते थे? या फ़िर मिर्च के मारे आंख से आंसू टपकते टपकते भी दो चार पडाके/गोलगप्पे (पानी पूरी शब्द में तो फ़ीलिंग की नहीं आती है) खाते थे।

यहां पर एक बार पडाके खाने गये तो उसने एक प्लेट में पडाके और एक कटोरी में आलू और पानी साथ रख दिया। हम उसकी तरफ़ और वो हमारी तरफ़ देखने लगा। मन मारकर उठाया और पूरी मेहनत खुद करनी पडी। वरना कहां वो दिन कि ठेले वाला ४ लोगों को एक साथ हैंडल करता था...वाह वाह...

फ़िर बारिश के मौसम के तो क्या कहने, नमक और नींबू लगा भुट्टा मिल जाये तो जीवन सफ़ल...हमने वो भी ठेले पर खडे होकर खूब खाये हैं :)

फ़िर, बरसात के मौसम में झांसी का कालेज भी एक रिसार्ट लगने लगता था झील के चलते...वो तो कोछाभांवर का माहौल और सचान का बिहेवियर इतना जलील न होता तो वो जगह प्रेम की झील में सपनों की नांव पर सर्द आहों की चप्पू चलाने के लिये एकदम मुफ़ीद थी। काश कि वहां किसी प्रेयसी के साथ बोटिंग वगैरह प्लान किया होता। या फ़िर यूनिवर्सिटी की पहाडी पर बना वो मन्दिर, जहां पर रिजल्ट से पहले हमने बडे बडे टापरों को मुरादे मांगते देखा । और हम सोचते कि इससे अच्छा लवर्स पाइंट्स नहीं हो सकता और यहां कोई लवर्स नहीं, कैसा शहर है झांसी :)

खैर आई ड्राईग्रेस...:)

टू बी कान्टीन्यूड...