एक अनमनी सी दोपहर...खिड़की के पास बैठे हुए, कोशिश की कि थोड़ा सा आसमान, थोड़े से हर घड़ी रंग बदलते बादल, थोड़े से पेड़,..कहीं कुछ दिखाई दें....बहुत कोशिशों के बाद भी सामने बस एक बड़ी सी पीले रंग की दीवार, कुछ खड़ी गाड़ियों के अलावा कुछ न दिखा....तो बाहर से आती ठंडी हवा को ही अपने हिस्से की प्रकृति मान लिया....और फिर वापस उसी खिड़की की ओर रुख़ किया जो शायद अब हमारा इकलौता झंरोखा है इस दुनिया को देखने का....
गुलज़ार साहब के शब्दों को बड़ी खूबसूरती से पंचम दा ने गीत में पिरोया है....और आप हम जैसे किसी प्रशंसक ने कुछ उम्दा तस्वीरें डाल के ये सुंदर विडियो बना दिया है ...
गुलज़ार साहब के शब्दों को बड़ी खूबसूरती से पंचम दा ने गीत में पिरोया है....और आप हम जैसे किसी प्रशंसक ने कुछ उम्दा तस्वीरें डाल के ये सुंदर विडियो बना दिया है ...
A beautiful song with some amazing locales reminding of the nature's bliss, we are far away from......
3 people have something to say...:
such an awesome thought!!
thanks for introducing me to the song..:)
Is "Jharonkhe" ko apna "ek" maadhyam samjho na ki "eklauta",
thodi si thandi hawa ko prakriti maan lena soch ko sankara karna hai.
Vastavikta ye hai ki wo hawa bus ek sanket matr hai,kabhi fursat mein poochna usse kahan kahan se ho kr aayi hai....
aur ye andaaza bhi lena ki bahar ki har cheez kitni badi hai.
gana bahut achcha hai :-)
Jis din aap yeh jaan lengi ki jis kan se yeh prakriti bani hai wohi kan aap mein, hum mein aur poore brahmand mein ek samaan hai, aap niraasha, dvesh, irshya se mukti praapt kar lengi aur prem ras mein talleen ho jaayengi :)
How good is that? :D
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